स्वागत है आपका हमारी खास सीरीज राजस्थान के किले और दुर्ग में जहां हम आपको एक एक करके सभी किलो और दुर्गों के बारे में विस्तार से बताएंगे यहां क्लिक करके पढ़ें पूरी सीरीज।
किले या दुर्ग का नाम:- सोनार किला/ जैसलमेर दुर्ग (Jaisalmer Fort)
कहां है:- जैसलमेर (राजस्थान)
निर्माण:- 1155 ईस्वी में राव जैसल ने करवाया
कहां बना है:- त्रिकुट पहाड़ी पर
पुन: निर्माण:- शालीवाहन द्वितीय
अन्य नाम:- सोनगढ़, त्रिकुटागढ़, कमरकोट, स्वर्ण दुर्ग
आकार:- अंगड़ाई लेते हुए शेर के समान और लंगर डाले जहाज के समान
प्रवेशद्वार:- अक्षयपोल
महल:- जवाहर महल, सर्वोत्तम विलास और बादल महल
सोनार किला जैसलमेर दुर्ग | Sonar Fort Jaisalmer In Hindi |
सोनार किले की विशेषताएं
- राजस्थान का प्रसिद्ध धान्वन दुर्ग है।
- राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है।
- यह किला बिना चूने और सीमेंट के बनाया गया है।
- इसकी छत लकड़ी से बनाई गई है जो आजतक कायम है।
- यह सर्वाधिक बुर्जों वाला किला भी कहा जाता है क्योंकि इसमें 99 बुर्ज है।
- इस किले के उपर सोनार किला नामक फिल्म भी बनी है जिसका निर्देशन सत्यजीत रे ने किया है।
- इस किले की फोटो डाक टिकट पर भी साल 2009 में आई थी।
- इस किले में भगवान श्री कृष्ण द्वारा निर्मित जैसल कुंआ भी मौजूद है।
- इस किले में प्राचीनतम पांडुलिपि जीनभद्र सूरी भंडार है।
सोनार किले के बारे में प्रमुख कथन
गढ़ दिल्ली गढ़ आगरो, अधगढ़ बीकानेर।
भलो चिनायों भाटियां सिरै तो जैसलमेर।।
घोड़ा कीजै काष्ठ का पग कीजे पाषाण।
बख्तर कीजै लोहे का, तब पहुंचे जैसाण।।
कर्नल टॉड:- सागर जैसा विशाल हौंसला, पत्थर जैसी मजबूत टांगे और दृढ़ निश्चय ही आपको जैसलमेर पहुंचा सकता है।
सोनार किला जैसलमेर के अढ़ाई साकें की कहानी / अर्द्धसाका
(1) प्रथम साका:- 1311 ईस्वी में मूलराज के समय
(2) दूसरा साका:- 14वीं शताब्दी में रावल दूदा के समय
(3) अर्धसाका:- 1550 ईस्वी में राव लूणकरण भाटी के समय, आई साके में केसरिया तो किया गया लेकिन जौहर नही किया गया इसी कारण इसे अर्द्ध साका कहा जाता है।
सोनार किला जैसलमेर के बारे में रोचक तथ्य
- इस किले को यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल की सूची में साल 2013 में शामिल किया गया है।
सोनार किले का इतिहास
- इस किले का निर्माण भाटी राजपूत राजा राव जैसल ने 1156 ईस्वी में करवाया कुछ किवदंती है की इसका निर्माण पहले का है लेकिन राव जैसल ने इसका निर्माण करवाकर इसे राजधानी बनाया।
- साल 1299 ईस्वी में इस किले में रावल जैत सिंह प्रथम के समय दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी ने इस किले का घेराव किया और उसके बाद मूलराज के साथ राजपूत सरदारों ने केसरिया किया और अपना अंतिम युद्ध लड़ा और राजपूत महिलाओं ने जौहर किया और उसके बाद किला मुगलों के नियंत्रण में रहा जबतक बचे भाटी राजाओं ने इसे अपने नियंत्रण में नहीं ले लिया।
- इसके बाद राव लूणकरण के समय अफ़गान सरदार अमीर अली ने किले पर हमला किया उसके बाद जब राजा को लगा की वह ये लड़ाई हार रहा है तो उसने अपनी सभी रानियों को मार दिया क्योंकि जौहर करने का समय उनके पास नही था लेकिन राव के पास फिर अतरिक्त सेना आ गई और राजा युद्ध जीत गया।