स्वागत है आपका हमारी सीरीज राजस्थान के किले और दुर्ग में यहां आज हम जानेंगे रणथंभौर दुर्ग के बारे में तो लेख को पूरा पढ़कर किले के बारे में जानकारी हासिल करें।
Ranthambore Fort |
कहां:- सवाई माधोपुर (अरावली और विंध्याचल पर्वतमाला के मध्य)
प्रारंभिक नाम:- रणस्तंभपुर (हम्मीर रासो के अनुसार)
निर्माण:- रणथंभनदेव चौहान ने (NOTE:- एक अन्य ग्रंथ वीर विनोद के अनुसार मोहनदास गौड़ ने इसका निर्माण करवाया 8वीं शताब्दी में
कई लोग इसका निर्माण राजा जयंत द्वारा 5वीं शताब्दी में मानते है
उपनाम:- दुर्गाधिपति, चित्तौड़ का छोटा भाई
रणथंभौर किले की कुंजी:- झाईन दुर्ग (जिसका विध्वंश अलाउद्दीन खिलजी ने किया)
विशेषता:- 1. अंडाकार (खासियत: दूर से दिखाई नहीं देता क्योंकि यह अंडाकार पहाड़ी पर बना है)
2. विषम आकृति की 7 पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
विश्व धरोहर स्थल:- 21 जून 2013 को
क्षेत्र:- 102 हैक्टेयर
रणथंभौर दुर्ग के बारे में प्रसिद्ध कथन
- एकमात्र दुर्ग जो बरूतर बंद है बाकि सब दुर्ग नंगे हैं (अबुल फजल)
- मैं ऐसे 10 दुर्गों को मुसलमानों के एक बाल के बराबर भी नहीं समझता (अलाउद्दीन खिलजी)
- आज कुफ का गढ़ इस्लाम का घर हो गया (अमीर खुसरो)
रणथंभौर दुर्ग में स्थित कलाकृति और महल
प्रमुख महल
- सुपारी महल:- सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक (मंदिर, मस्जिद और गिरजाघर एक साथ बने है)
- जोगी महल
- जौंरा - भौंरा महल (अनाज रखने का गोदाम कुंड)
- हम्मीर महल
- बादल महल
- माला महल
प्रमुख जल स्त्रोत
- रनिहाड तालाब
- पदमाला तालाब
प्रमुख छतरियां
- 32 खंभों की छतरी इसे न्याय या हम्मीर की कचहरी भी कहते है
- एक खंभे की छतरी
- अधूरी छतरी
- कुत्ते की छतरी
धार्मिक स्थल
- त्रिनेत्र गणेश मंदिर
- पीर सदरूद्दीन की दरगाह
- शिव मंदिर
- लक्ष्मीनारायण मंदिर
- भगवान सुमतिनाथ (पांचवे तीर्थंकर का जैन मंदिर)
- भगवान संभवनाथ (जैन मंदिर)
रणथंभौर दुर्ग में प्रवेश द्वारों के नाम
- नौलखा दरवाजा:- इसका जीर्णोद्धार महाराज जगत सिंह ने करवाया।
- तोरण दरवाजा या अंधेरी दरवाजा:- मुस्लिम शासकों द्वारा
- त्रिपोलिया दरवाजा:- जयपुर शासन द्वारा
- हाथी पोल
- सूरज पोल
- गणेश पोल
राजस्थान का पहला जल जौहर
प्रथम जल जौहर राजस्थान के रणथंभौर किले में 11 जुलाई 1301 में रंगदेवी की नेतृत्व में हुआ।
इस समय यहां के रहा हम्मीर देव चौहान थे और आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी का हुआ था।
निम्नलिखित मेवाड़ के राजाओं का इसपर शासन रहा
राणा हम्मीर (1326 से 1364 तक)
राणा कुम्भा (1433 से 1468 तक)
राणा सांगा (1508 से 1528 तक)
राणा उदय सिंह के शासन काल में इसे हाड़ा राजपूतों ने 1468 से 1473 तक यह किला अपने क्षेत्राधिकार में ले लिया।
फिर बीच में थोड़े समय के लिए गुजरात के राजा बहादुर शाह ने साल 1532 से 1535 तक अपने कब्जे में ले लिया।
इसके बाद 17वीं सदी आते आते किले पर जयपुर के कछवाहा (नरूका) राजाओं का अधिकार हो गया और वो भारत की स्वतंत्रता तक बना रहा।
रणथंभौर किले का इतिहास
साल 1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय के पुत्र ने रणथंभौर दुर्ग में चौहान वंश की नीव रखी।
इस दुर्ग पर अनेक आक्रमण हुए
सर्वप्रथम इस किले पर आक्रमण कुतुबुद्दीन ऐबक ने साल 1291 में किया।
उसके एक साल बाद ही 1292 में सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने दुर्ग पर आक्रमण किया।
इसपर कई आक्रमण हुए लेकिन जबतक राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान जिंदा थे यहां पर उनका राज रहा इसके बाद यहां दिल्ली सल्तनत का राज्य हो गया।