स्वागत है आपका हमारी सीरीज राजस्थान के प्रमुख किले और दुर्ग में जहां हम आज आपको बताएंगे चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बारे में यह सभी के लिए है चाहे पढ़ने वाले छात्र हों या तैयारी करने वाले अभ्यर्थी और टूर पर जाने वाले पर्यटक या इतिहास की जानकारी रखने वाले लोग सभी इसको पढ़ सकते है।
Chittorgarh Fort In Hindi |
कहां:- राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में
निर्माण:- चित्रांगद मौर्य (चित्रांग मौर्य) ने 7वीं शताब्दी में करवाया
पुनः निर्माण:- महाराणा कुम्भा (15वीं शताब्दी में)
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के उपनाम:- राजस्थान का गौरव, दुर्गों का सिरमौर, दक्षिण का प्रहरी, मालवा प्रदेश का प्रवेश द्वार और चित्रकूट दुर्ग
कहां बना है:- मेसा के पठार पर
नदी:- बेड़च और गंभीरी नदियां
दुर्ग का आकार:- व्हेल मछली जैसा
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बारे में कहावत:- गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया
राजधानी:- मेवाड़
यूनेस्को विश्व विरासत स्थल:- 21जून, 2013 में
क्षेत्रफल:- 280 हैक्टेयर
निर्माण कार्य:- 19 बड़े मंदिर, 20 बड़े जल निकाय, 4 स्मारक, महल और टावर बने हुए है
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बारे में महत्वपूर्ण बातें
- यह राजस्थान का सबसे बड़ा आवासीय किला (लिविंग फोर्ट) है।
- यह एकमात्र ऐसा किया है जिसमें खेती का कार्य किया जाता है।
- यह किला वीरता की मिसाल है यह सबसे ज्यादा जौहर और शाका वाला किला है।
- पाडन पोल (मुख्य द्वार) कई लोग पैदल पोल भी कहते है
- भैरव पोल
- हनुमान पोल
- गणेश पोल
- जोली पोल
- लक्ष्मण पोल
- राम पोल
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बनें महल, मंदिर और इमारतें
- रावत बाघ सिंह जी स्मारक पाडन पोल के पास बना हुआ है।
- कल्ला जी राठौर की छतरी भैरव पोल के पास बनी हुई है।
प्रमुख महल
- फतेहप्रकाश महल
- पद्मिनी महल
- कंवरपदा महल
- गौरा-बादल महल
- नवलखा बुर्ज
- हिंगलू अहाड़ा
प्रमुख मंदिर
- तुलजा भवानी मंदिर
- एकलिंग जी मंदिर
- श्रृंगार चंवरी मंदिर
- अदभुत शिव मंदिर
- कालिका माता मंदिर
- सतबीस मंदिर
- मीरा मंदिर
विजय स्तम्भ और कीर्ति स्तंभ
विजय स्तंभ | कीर्ति स्तंभ |
निर्माण :- महाराणा कुम्भा (1440 से 1448 ईसवी के बीच) | निर्माण:- बघेर वंशीय शाह जीजा (राजा रावल कुमार सिंह के शासन के दौरान) |
भगवान विष्णु को समर्पित | आदिनाथ को समर्पित |
122 फिट ऊंचा | 75 फिट ऊंचा |
3 मंजिल | 6 मंजिल |
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बारे में थोड़ा सा इतिहास
चित्रकूट दुर्ग नाम कैसे पड़ा:- इस किले का निर्माण कहा जाता है की चित्रांगद मौर्य ने करवाया था जिससे इसका नाम चित्रकूट पड़ा है।
इसका प्रमाण भी मिलता है क्योंकि लिपि के अनुसार यहां पर जयमल पत्ता झील के पास कई 9वीं शताब्दी के बौद्ध स्तूप पाए गए थे।
बप्पा रावल ने कैसे किया अधिकार:- कहा जाता है की 728 या 734 ई. में राजपूत राजा बप्पा रावल मौर्य शासक मानमोरी को हराकर इस किले पर अधिकार कर लिया।
कई जगह कहा जाता है की बप्पा रावल को यह किला दहेज में मिला था बप्पा रावल गुहिलवंशीय राजपूत थे।
उसके बाद मालवा के पंवार वंशी राजा मूंज ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया और 9 और 10वीं शताब्दी में इसपर राज्य किया।
इसके बाद परमारो के पास भी यह ज्यादा दिन नहीं रहा साल 1133 में गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह जिन्हे सिद्धराज भी कहा जाता है उन्होंने यशोवर्मन को हराकर चित्तौड़ किले पर अपना अधिकार कर लिया।
इसके बाद सोलंकी राजपूतों से यह वापस गुहिलवंशी राजपूतों के पास आया:- सोलंकी जयसिंह के उत्तराधिकारी हुए कुमारपाल उनके भतीजे थे अजयपाल उससे वैवाहिक संबंध बनाए सामंत सिंह ने और चितौड़ पर पुन: गुहिलवंशीयो का शासन स्थापित किया।
यह वहीं सामंत सिंह है जिनका विवाह पृथ्वीराज चौहान की बहन पृथ्वी बाई से हुआ था।
लेकिन सामंत सिंह की मृत्यु तराइन की दूसरी लड़ाई में हो गई इसके बाद जैत्र सिंह ने चित्तौड़ पर शासन स्थापित किया।
प्रथम शाका:- साल 1303 में यहां अलाउद्दीन खिलजी और रावल रत्न सिंह की लड़ाई हुई जिसके बाद राजपूत रानियों ने जौहर किया और इसे प्रथम शाका के नाम से जाना जाता है। रानी पद्मिनी ने इस जौहर का नेतृत्व किया।
अलाउद्दीन खिलजी की विजय के बाद उसने यह राज्य खिज्र खां को दे दिया लेकिन बाद में खिज्र खाँ ने कान्हादेव के भाई मालदेव को यहां का राज्य सौप दिल्ली वापसी की।
दूसरा जौहर:- साल 1534 ई. में राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में गुजरात के राजा बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया इस समय रानी कर्णावती के नेतृत्व में 8 मैच 1534 में जौहर हुआ।
तीसरा जौहर:- राणा उदयसिंह के समय जब अकबर का आक्रमण हुआ जब 25 फरवरी,1568 में पत्ता सिसौदिया की पत्नी फूल कँवर के नेतृत्व में जौहर किया गया।