रावल समर सिंह मेवाड़ (चित्तौड़गढ़) के गुहिल वंशीय शासक थे जिन्होंने साल 1273 से 1302 ईस्वी तक शासन किया।
इनके पिताजी का नाम रावल तेज सिंह और इनके पुत्र रावल रतन सिंह थे जिनको अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध के लिए जाना जाता है।
रावल समर सिंह (Rawal Samar Singh) |
रावल समर सिंह के बारे में कुछ तथ्य उनके शासनकाल के समय के भी
पिताजी का नाम:- महारावल तेज सिंह
माता जी का नाम:- जयतल्ल देवी
बेटे का नाम:- रावल रत्न सिंह और कुंभकर्ण
महामात्य (महामंत्री):- निम्बा
सेनापति:- राणा लक्ष्मणसिंह
राज्य के प्रमुख कर्मचारी:- करणा और सोहड़ा
गयासुद्दीन बलबन के सेनापति को हराया
इतिहास में कहा जाता है की साल 1285 ईस्वी में रावल समर सिंह ने तुर्की से आए हुए गुजरात में आक्रमणकारी गयासुद्दीन बलबन के सेनापति को पराजित कर गुजरात की रक्षा की।
गयासुद्दीन बलबन उस समय दिल्ली के सुलतान थे समर सिंह उस समय मेवाड़ महारावल थे।
रावल समर सिंह ने वसूला था अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति से जुर्माना
साल 1299 ई. में दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति उलुग खां अपनी फौज लेकर वागड़ और मोडासा को नष्ट करता हुआ गुजरात गया।
लेकिन गुजरात जाने से पहले उसे मेवाड़ को पार करना था और रावल समर सिंह की सेना ने उसको चारों ओर से घेर लिया।
उसके बाद उलुग खां ने भारी जुर्माना रावल को दिया उसके बाद ही उन्होंने अलाउद्दीन की सेना को रास्ता दिया और उसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने उनके बेटे रतन सिंह पर आक्रमण किया था।
रावल समर सिंह द्वारा मालवा के परमारों को हराना
इस लड़ाई का जिक्र राणपुर के शिलालेखों में मिलता है -
एक जमाना था जब चित्तौड़ के किले पर मालवा के परमारों का शासन हुआ करता था और बाद में इसे गुहिलों ने अपने कब्जे में लिया।
लेकिन जैसे ही गुहिलों की शक्ति बढ़ी मालवा के परमार राजा गोगादेव प्रथम और समर सिंह मेवाड़ के बीच युद्ध हुआ।
इस लड़ाई में रावल समर सिंह जीते और मेवाड़ सेनापति राणा लक्ष्मण सिंह इस लड़ाई के हीरो रहे।
जैन धर्म को बहुत सम्मान देते थे समर सिंह
अंचलगच्छ की पट्टावली ग्रंथ के अनुसार रावल समर सिंह ने जैन आचार्य अमित सिंह के प्रभाव में आकर मेवाड़ में जीव हत्या पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया था।
रावल समर सिंह ने करवाए थे अनेकों मंदिरों के जीर्णोद्धार
- अचलेश्वर मंदिर आबू:- महारावल समर सिंह ने अचलेश्वर मंदिर के निकट वाले मठ का जीर्णोद्धार करवाया और ध्वजदंड चढ़ाकर साधुओं के भोजन की व्यवस्था की।
- त्रिभुवन नारायण मंदिर:- चित्तौड़ दुर्ग में स्थित इस मंदिर का निर्माण परमार राजा भोज ने करवाया था बाद में इसकी मरम्मत वगैरा समर सिंह जी ने करवाई।
- शीतला माता मंदिर का निर्माण:- रावल समर सिंह के शासनकाल में उदयपुर जिले के वल्लभनगर तहसील के उंटाला गांव में स्थित शीतला माता मंदिर का निर्माण समर सिंह जी ने करवाया था।
- महासतिया के कोट और प्रवेश द्वार का निर्माण:- चित्तौड़गढ़ दुर्ग के विजय स्तंभ के निकट महासतिया स्थान है जहां दाह संस्कार किया जाता है जहां पर कुछ छतरियां भी है इसके आज पास कोटे और प्रवेश द्वार का निर्माण समर सिंह ने करवाया था।
- कीर्तिस्तंभ का निर्माण:- इन्ही के शासन काल में 1300 ई. में जैन व्यापारी जीजाशाह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में एक ऊंचे चबूतरे पर कीर्ति स्तंभ का निर्माण करवाया व्यापारी जीजाशाह के पिताजी का नाम नाय था।
समर सिंह के बेटे कुम्भकर्ण की कहानी
महारावल समर सिंह के दो बेटे थे रतन सिंह और कुंभकर्ण रतन सिंह मेवाड़ के राजा बने और कुंभकर्ण नेपाल चला गया और वहां अपना वंश चलाया।
नेपाल का राजवंश यहीं से निकला है और नेपाल के राजाओं ने राणा की उपाधि मेवाड़ के गुहील राजपूत राजाओं से हासिल की है।
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