रिसर्च पोस्ट: सरकार चाहे किसी की भी हो चुनी जनता द्वारा ही जाती है लेकिन जनता के लिए वो होती है या नहीं? इसका जवाब आपको कॉमेंट में नीचे वाली कुछ लाइनें पढ़कर देना है।
क्यों चर्चा में हसदेव अरण्य?
मामला है छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के हसदेव अरण्य (जंगल) का जहां जहां कोयला खदानों के लिए वन की कटाई चल रही है जहां ग्रामीणों (आदिवासियों) द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है।
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कहां से शुरू होता है हसदेव मामला?
हसदेव के बाहर के लोग समझ रहे है की मामला बीजेपी की सरकार बनने के बाद का है जब 13 दिसंबर 2023 को सीएम विष्णु देव साय ने सीएम पद की शपथ ली और उनको मुख्यमंत्री बने 7 दिन भी नही हुए की 21,22 और 23 दिसंबर को हसदेव अरण्य से ऑफिशियल आंकड़ों के अनुसार लगभग 15000 और ग्रामीणों के अनुसार लगभग 30000 पेड़ो की कटाई की गई।
लेकिन हम आपको बताते है कहानी शुरू से
साल 2010 से हसदेव का दोहन आरंभ ही हो चुका था जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और राज्य में बीजेपी की भाजपा सरकार ने खदानों के लिए प्रस्ताव भेजा और केंद्र की कांग्रेस सरकार ने इसकी स्वीकृति दी।
उसके बाद 2010 में ही केंद्रीय वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हसदेव को NO GO Area घोषित कर दिया और यहां खनन पर रोक लगा दी।
लेकिन फिर इसी मंत्रालय की वन सलाहकार समिति FAC ने इस निर्णय को बदला और परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खदानों को स्वीकृति दे दी।
लेकिन बाद में फिर से इसे 2014 में ग्रीन ट्रिब्यूनल NGT ने इसे निरस्त कर दिया।
अब आप सोच रहें होंगे की इसमें पेड़ो की कटाई तो हुई नही तो पिक्चर अभी बाकी है
कांग्रेस के राज में भी हुई थी पेड़ो की कटाई
सितम्बर 2022 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी लेकिन उस समय भी 3 हेक्टेयर भूमि से लगभग 8000 पेड़ो की कटाई की गई थी।
लेकिन अब जैसे कांग्रेस पर्यावरण हितैषी बन रही है जब BJP बनी और डिप्टी सीएम TS सिंहदेव के बंगले का घेराव भाजपा ने किया लेकिन डिप्टी सीएम हसदेव अरण्य पहुंचे और वहां जाकर लोगो को आश्वासन दिया की अब कटाई नही होगी और कटाई बंद हो गई।
हसदेव अरण्य की कटाई से आदिवासी क्यों दुखी उन्हे क्या नुकसान होगा अब वो जान लेते है
कोयले के खनन के लिए जंगलों को काटा जा रहा है इससे गांव वालो के लघु उद्योग समाप्त हो जायेंगे और जंगल से जुड़े कार्य महिलाएं और पुरुष करते है वो भी समाप्त हो जायेंगे।
जैसे पशुपालन, सुखी लकड़ी एकत्र करना, जड़ी बूटियां ढूंढना आदि सभी करू ठप्प पड़ जायेंगे।
हसदेव जंगल में कई नाले है छोटे छोटे जो आगे जाकर हसदेव नदी में मिलते है नदी पर बांध मिनी माता बांगो बांध जिससे चार जिलों की चार लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होती है उसपर भी थोड़ा असर पड़ेगा।
1876 वर्ग किलोमीटर में फैला हसदेव का क्षेत्र अनेक विलुप्त होने ही वाले वन्य जीवों का घर है और यहां हाथी बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते है वे सब उजड़ जायेंगे।
आदिवासी इस इलाके में 300 सालो से रह रहें है और वे यहां से जुड़े हुए है अब उन्हें अचानक से विस्थापित किया जाना बिलकुल उन्हे नही भाएगा और महिलाएं जो यहां छोटा मोटा काम कर लेती थी कही और तो वे नही कर पाएंगी।
हसदेव से जुड़े मामले के बारे में कुछ अन्य जानकारी
- पेसा कानून में आता है इलाका: संविधान की 5वीं अनुसूची में पेसा कानून के तहत आदिवासी इलाकों में स्थानीय स्वशासन के तहत ग्राम सभाओं को कुछ अधिकार दिए गए है।
- वैसे तो बताया जा रहा है की कंपनियों के पास ग्राम सभाओं की सहमति है लेकिन ग्रामीण आदिवासियों का कहना है की फर्जी अनुमति उनके पास है गांव वालो ने अनुमति नहीं दी है।
- मामला जब बढ़ा है जब 21,22 और 23 दिसंबर 2023 को पुलिस की निगरानी में कटाई की गई और विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी की गई।
- गांव वालो की मांग है की हसदेव अरण्य में प्रस्तावित 23 कोयला खदानों को निरस्त किया जाए।
- गांव वाले पिछले 675 दिनों से हरिहरपुर और घाटबर्रा में धरना दिए हुए है।
- हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति बनाई गई है जिसके प्रमुख उमेश्वर सिंह आरमो है।