सती प्रथा का अंत आज के दिन यानी 4 दिसंबर 1829 को हुआ था आज हम इसकी शुरुआत से लेकर अंत तक की पूरी कहानी जानेंगे तो लेख को पूरा जरूर पढ़ना।
इस लेख में हम जानेंगे निम्नलिखित बातें
- कुछ लोग देते है माता सती का उदाहरण
- हिंदू धर्म की प्रथा लेकिन हिंदू धर्म ग्रंथो में नही है उल्लेख
- हुमायूं, अकबर और औरंगजेब ने लगाई थी अपने राज्य में सती प्रथा पर पाबंदी
- राजपूताना में जौहर परंपरा भी इसका उदाहरण
- राजा राममोहन राय ने क्यों बंद करवाया सती प्रथा को?
- अंग्रेजो ने पहले क्यों नहीं किया कुप्रथा को बंद
- हिंदू धर्म की प्रथा लेकिन मुगल काल में देखने को मिलते है ज्यादतर प्रमाण
अगर आप इस लेख को पूरा पढ़ते है तो अंत में एक क्विज है उसमे जरूर भाग लें उससे पता चलेगा की आपको सती प्रथा के बारे में कितनी जानकारी है।
सती प्रथा क्या थी?
हिंदू धर्म में प्रचलित एक ऐसी प्रथा जिसमें पति की मृत्यु हो जाने के बाद उसकी पत्नी को उसके साथ जिंदा जलना होता था इस सती प्रथा कहा जाता है। इस प्रथा को शुरुआत में स्त्रियां अपने मन से किया करती थी लेकिन बाद में इसने एक परंपरा का रूप ले लिया और इसे जबरन करवाया जाने लगा।
सती प्रथा (Sati (Practice) |
सती प्रथा के बारे में मुख्य बातें
कई लोगों के पास समय कम होगा उन्हे नोट्स बनाने होंगे तो उनके लिए स्पेशल यह मैने लिखा है इससे आपको इस प्रथा के बारे में मुख्य मुख्य बातें पता चल जाएंगी।
- सती प्रथा का अंत 3 दिसंबर 1829 को हुआ था।
- कुछ लोग इसके पीछे पौराणिक तर्क देते है कहते है की पति भगवान शिव के अपमान के बाद माता सती ने अपने आप को आग के हवाले कर सती हुई थी।
- सती प्रथा को हिंदू धर्म से जोड़कर देखा जाता है लेकिन चारो वेदों में इसका कही उल्लेख नहीं मिलता (चार वेद: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद)
- सबसे पहले सती प्रथा के प्रमाण गुप्तकाल में (510 ईसवी) गोपराज के युद्ध में मारे जाने के बाद उनकी पत्नी ने उनके साथ प्राण त्याग दिए थे।
- मुगल काल में सती प्रथा का दूसरा रूप जौहर राजस्थान में देखने को मिला जिसमें जब राजपूत राजा मुगल आक्रांताओं से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाते थे तब उनकी पत्नियां अपने आप को आग के हवाले कर दिया करती थी ताकि कोई मुगल इनपर नज़र ना डाल सके।
- शुरुआत में यह प्रथा स्त्री की ईच्छा पर निर्भर करती थी लेकिन एक समय ऐसा आया जब बंगाल में महिलाओं को जबरन जिंदा जलाया जाने लगा।
- सती प्रथा का महिमामंडन इस हद तक किया गया की राजस्थान में तो उनका मंदिर तक बनवाया जाने लगा।
- सती प्रथा पर भारत में पाबंदी यानी बैन लगवाने में लॉर्ड विलियम बैन्टिक और राजा राममोहन राय का अहम योगदान रहा इनके ही प्रयासों से अंग्रेजी सरकार ने 1829 में इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया।
अमीर खुसरो ने इस प्रथा की तारीफ करते हुए कहा था "मैने इस तरह की प्रथा को दुनिया के किसी देश में नहीं देखा इस देश की महिलाएं धन्य है।
हिंदू धर्म में प्रचलित यह सती प्रथा मुगल काल में ज्यादा देखने को मिली
यह प्रथा वैसे तो भारतीय सनातन धर्म में प्रचलित है लेकिन इसका प्रभाव भारतीय संस्कृति पर मुगल काम मे देखने को मिलता है क्योंकि उस समय मुगल स्त्रियों पर अत्याचार करते होंगे या जबरन विवाह के साथ उनके साथ छेड़छाड़ आम बात होगी इसलिए शायद स्त्रियां ऐसा स्वेक्षा से करती हों।
मुगल काल में सती प्रथा पर रोक भी लगी
- मुगल काल में मुगल शासक हुमायूं ने इस प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास किया लेकिन वो इसमें कामयाब नही हो सके।
- इसके बाद उनके बेटे अकबर ने इस प्रथा पर रोक लगाई लेकिन राजपूताना में स्वतंत्र राजपूत शासकों की छत्रछाया में यह प्रथा चलती रही इसे अकबर भी नही रुकवा सका।
- बाद में कुछ स्त्रियां इसे स्वेक्षा से करती थी इसलिए अकबर ने इसे पूर्वानुमति के साथ कानूनी प्रथा बना दिया था।
लॉर्ड विलियम बैंटिक और राजा राममोहन राय के प्रयासों से बना कानून?
- वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिक ने 4 दिसंबर 1829 को सती प्रथा पर भारत में पूर्णता रोक लगा दी।
- इस कानून के तहत उन लोगो को मौत की सजा का प्रावधान किया गया जिन्होंने या तो विधवा को जबरन जिंदा जलाया या जलाने में मदद की।
राजस्थान सती प्रथा रोकथाम अधिनियम 1987
4 सितम्बर 1987 को राजस्थान की रूप कंवर ने अपने पति के साथ आत्मदाह कर लिया और इसे पूरा देश हिल गया।
इसके बाद देशभर में आंदोलन होने लगे तो राजस्थान सरकार की अधिनियम लाना पड़ा जिसके तहत " सती होने की कोशिश करने, सती होने के लिए उकसाने और सती होने का महिमामंडन करने को" दंडनीय अपराध बना दिया गया।
बाद में भारतीय केंद्रीय सरकार ने इस अधिनियम की एक साल बाद संघीय संविधान में भी शामिल कर लिया और ये देश भर में लागू हुआ।
क्यों राजा राममोहन राय बन गए सती प्रथा के लिए काल?
राजा राममोहन राय जब अपने बाल्यकाल में ही थे जब उनके बड़े भाई की मृत्यु हो गई तो उनकी भाभी को उनके बड़े भाई के साथ जबरन जला दिया गया था।
उसके बाद से ही राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को जड़ से खत्म करने की ठान ली और उसे जड़ से उखाड़ फेंका।
अंग्रेजो और मुगलों ने इस प्रथा पर पहले रोक क्यों नही लगाई
अंग्रेजो और मुगलों दोनो ने ही शुरुआत से इस प्रथा पर रोक नही लगाई क्योंकि उन्हें लगता था की इसपर रोक लगाने से समाज का एक बड़ा तबका उनसे नाराज हो जायेगा और उनका शासन खतरे में आ जायेगा।
औरंगजेब ने मुगल रियासत में इस प्रथा को पूरे तरीके से निषेध कर दिया था।
सती प्रथा का उल्लेख किस वेद में मिलता है?
किसी भी वेद में नही
सती प्रथा को बैन करवाने में अहम भूमिका किसने निभाई?
सती प्रथा को भारत में सर्वप्रथम हुमायूं ने बाद में अकबर ने और उसके बाद औरंगजेब ने लेकिन अंत में लॉर्ड विलियम बैन्टिक और राजा राममोहन राय ने अहम भूमिका निभाई।
भारत का पहला जौहर कब हुआ था?
भारत में पहला जौहर 336 और 323 ईसा पूर्व के बीच हुआ था।
सती प्रथा को कब भारत से संपूर्ण रूप से निषेध किया गया?
4 दिसंबर 1829